नेहा के त्याग की कहानी
‘‘खैर, खुशी तो हमें तुम्हारी हर
सफलता पर होती रही है और यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन)
द्वारा तुम्हारे चुने जाने पर अब हमें गर्व भी हो रहा है मगर एक बात रहरह कर खटक
रही है,’’ नितिन अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए बीच में थोड़ा रुक गए, ‘‘तुम्हारे इतने दूर जाने
के बाद तुम्हारी मम्मी एकदम अकेली रह जाएंगी.’’
‘‘छोडि़ए भी, करन भैया,
अकेली रह जाऊंगी? आप सब जो हैं यहां,’’ नेहा जल्दी से बोली. अपने मन की बात नितिन की जबान पर आती देख कर वह
विह्वल हो उठी थी.
‘‘हम तो खैर मरते दम तक यहीं रहेंगे. लेकिन
हम में और जितेन में बहुत फर्क है.’’
‘‘वह फर्क तो आप की नजरों में होगा, चाचाजी. पापा के गुजरने के बाद मैं ने आप को ही उन की जगह समझा है. आप को
अपना बुजुर्ग और मम्मी का संरक्षक समझता हूं,’’ जितेन बोला.
‘‘लीजिए, करन भैया. अब
आप केवल राजन के मित्र ही नहीं, जितेन द्वारा बनाए गए मेरे
संरक्षक भी हो गए हैं,’’ नेहा हंसी.
‘‘उस में मुझे कोई एतराज नहीं है, नेहा. मुझ से जो भी हो सकेगा तुम्हारे लिए करूंगा. मगर, नेहा, मैं या मेरे बच्चे हमेशा गैर रहेंगे. सोचता
हूं अगर जितेन यूनेस्को की नौकरी का विचार छोड़ दे तो कैसा रहे?’’
‘‘क्या बात कर रहे हैं, चाचाजी? लोग तो ऐसी नौकरी का सपना देखते रहते हैं,
इस के लिए नाक रगड़ने को तैयार रहते हैं और मुझे तो फिर इस नौकरी के
लिए खास बुलाया गया है और आप कहते हैं कि मैं न जाऊं. कमाल है,’’ जितेन चिढ़ कर बोला.
‘‘लेकिन, तुम्हारी यह
नौकरी भी क्या बुरी है? यहां भी तुम्हें खास बुलाया गया था
और आगे तरक्की के मौके भी बहुत हैं. भविष्य तो तुम्हारा यहां भी उज्ज्वल है.’’
‘‘चाचाजी, आप ने अपने
क्लब का स्विमिंग पूल भी देखा है और समुद्र भी. सो, दोनों का
फर्क भी आप समझते ही होंगे,’’ जितेन मुसकराया.
‘‘मैं तो समझता हूं, बरखुरदार,
लेकिन लगता है तुम नहीं समझते. क्लब के स्विमिंग पूल का पानी अकसर
बदला जाता है, सो साफसुथरा रहता है. मगर समुद्र में तो
दुनियाजहान का कचरा बह कर जाता है. फिर उस में तूफान भी हैं, चट्टानें भी और खतरनाक समुद्री जीव भी. यूनेस्को की नौकरी का मतलब है
पिछड़े देशों में जा कर अविकसित चीजों का विकास करना, पिछड़ी
जातियों का आधुनिकीकरण करना. काफी टेढ़ा काम होगा.’’
‘‘जिंदगी में तरक्की करने के लिए टेढ़े और
मुश्किल काम तो करने ही पड़ते हैं, चाचाजी. और फिर जिन्हें
समुद्र में तैरने का शौक पड़ जाए वे स्विमिंग पूल में नहीं तैर पाते.’’
‘‘यही सोच कर तो कह रहा हूं, बेटे, कि तुम समुद्र के शौक में मत पड़ो. उस में फंस
कर तुम नेहा से बहुत दूर हो जाओगे. माना कि अब संपर्क साधनों की कमी नहीं, लगता है मानो आमनेसामने बैठ कर बातें कर रहे हैं. फिर भी, दूरी तो दूरी ही है. राजन के गुजरने के बाद नेहा सिर्फ तुम्हारे लिए ही जी
रही है. तुम्हारा क्या खयाल है? सिर्फ आपसी बातचीत के सहारे
वह जी सकेगी, टूट नहीं जाएगी?’’
‘‘जानता हूं, चाचाजी.
तभी तो मम्मी को आप के सुपुर्द कर के जा रहा हूं. मैं कोशिश करूंगा कि जल्दी ही
इन्हें वहां बुला लूं.’’
‘‘और भी ज्यादा परेशान होने को. यहां की इतने
साल की प्रभुत्व की नौकरी, पुराने दोस्त और रिश्ते छोड़ कर
नए माहौल को अपनाना नेहा के लिए आसान होगा? अगर कोई अच्छी
जगह होती तो भी ठीक था, लेकिन तुम तो अफ्रीकी या अरब इलाकों
में ही जाओगे. वहां खुश रहना नेहा के लिए मुमकिन न होगा.’’
‘‘फिर भी हालात से समझौता तो करना ही पड़ेगा,
चाचाजी. महज इस वजह से कि मेरे जाने से मम्मी अकेली रह जाएंगी,
इत्तफाक से मिला यह सुनहरा अवसर मैं छोड़ने वाला नहीं हूं.’’
‘‘बहुत अच्छा हुआ, यह
बात तू ने मम्मी के जाने के बाद कही,’’ नितिन ने एक गहरी
सांस खींच कर कहा.
‘‘क्यों? मम्मी तो
स्वयं ही यह नहीं चाहेंगी कि उन की वजह से मेरा कैरियर खराब हो या मैं जिंदगी में
आगे न बढ़ सकूं.’’
‘‘बेशक, लेकिन जो बात
तुम ने अभी कही थी न, वही तुम्हारे पापा ने उन्हें आज से 25
वर्षों पहले बताई थी.’’
उसे सुन कर उन्हें राजन की याद आ जाना
स्वाभाविक ही था. दरवाजे के पीछे खड़ी नेहा का दिल धक्क से हो गया.
‘‘क्या बताया था पापा ने मम्मी को?’’ जितेन आश्चर्य से पूछ रहा था.
नीषा ने चाहा कि वह जा कर नितिन को रोक दे. उस
ने जो बात नितिन को अपना घनिष्ठ मित्र समझ कर बताई थी उसे जितेन को बताने का करन
को कोई हक नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात सुन कर जितेन उदारता अथवा एहसान के
बोझ से दब जाए और नेहा के प्रति उतना कृतज्ञ न हो पाने की वजह से उस के दिल में
अपराधभावना आ जाए, मगर नेहा के पैर जैसे जमीन से चिपक कर रह
गए.
नितिन बता रहे थे, ‘‘तुम्हारी मम्मी कितनी मेधावी थीं, शायद इस का
तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा. उन जैसी प्रतिभाशाली लड़की को इतनी जल्दी प्यार और
शादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए था और अगर शादी कर भी ली थी तो कम से कम घर और
बच्चों के मोह से तो बचे ही रहना चाहिए था. पर नेहा ने घर और बच्चों के चक्कर में
अपनी प्रतिभा आम घरेलू औरतों की तरह नष्ट कर दी.’’
‘‘खैर, यह तो आप
ज्यादती कर रहे हैं, चाचाजी. मम्मी आम घरेलू औरत एकदम नहीं
हैं,’’ जितेन ने प्रतिवाद किया, ‘‘मगर
पापा ने क्या कहा था, वह बताइए न?’’
‘‘वही बता रहा हूं. तुम्हारी मम्मी ने कभी
तुम से जिक्र भी नहीं किया होगा कि उन्हें एक बार हाइडलबर्ग के इंस्टिट्यूट औफ
एडवांस्ड साइंसैज ऐंड टैक्नोलौजी में पीएचडी के लिए चुना गया था. तुम्हारी दादी और
राजन ने तुम्हारी पूरी देखभाल करने का आश्वासन दिया था. फिर भी नेहा जाने को तैयार नहीं हुईं, महज तुम्हारी वजह से.’’
‘‘मैं उस समय कितना बड़ा था?’’
‘‘यही कोई 5-6 महीने के यानी जिस उम्र में
मां ही होती है जो दूध पिला दे. और दूध तुम बोतल से पीते थे. सो, तुम्हारी दादी और पापा तुम्हारी देखभाल मजे से कर सकते थे. लेकिन तुम्हारी
मम्मी को तसल्ली नहीं हो रही थी. उन के अपने शब्दों में कहूं तो ‘इतने छोटे बच्चे
को छोड़ने को मन नहीं मानता. वह मुझे पहचानने लग गया है. मेरे जाने के बाद वह मुझे
जरूर ढूंढ़ेगा. बोल तो सकता नहीं कि कुछ पूछ सके या बताए जाने पर समझ सके. उस के
दिल पर न जाने इस का क्या असर पड़ेगा? हो सकता है इस से उस
के दिल में कोई हीनभावना उत्पन्न हो जाए और मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा किसी
हीनभावना के साथ बड़ा हो. मैं, डा. नेहा, एक जानीमानी औयल टैक्नोलौजिस्ट की जगह एक स्वस्थ, होनहार
बच्चे की मां कहलाना ज्यादा पसंद करूंगी.’’’
नेहा और ज्यादा नहीं सुन सकी. उसे उस शाम की
अपनी और राजन की बातचीत याद हो आई.
‘तुम्हारा बच्चा अभी तुम्हें ढूंढ़ने,
कुछ सोचने और ग्रंथि बनाने की उम्र में नहीं है. पर जब वह कुछ
सोचनेसमझने की उम्र में पहुंचेगा तब वह अपनी ही जिंदगी जीना चाहेगा और तुम्हारी
खुशी के लिए अपनी किसी भी खुशी का गला नहीं घोंटेगा. यह समझ लो, नेहा,’ राजन ने उसे समझाना चाहा था.
‘उस की नौबत ही नहीं आएगी, राजन. मेरी और मेरे बेटे की खुशियां अलगअलग नहीं होंगी. बेटे की खुशी ही
मेरी खुशी होगी,’ उस ने बड़े दर्द से कहा था.
‘यानी तुम अपना अस्तित्व अपने बेटे के लिए
ऐसे ही लुप्त कर दोगी. याद रखो, नेहा, चंद
सालों के बाद तुम पाओगी कि न तुम्हारे पास बेटा है और न अपना अस्तित्व, और फिर तुम अस्तित्वविहीन हो कर शून्य में भटकती फिरोगी, खुद को और अपने बेटे को कोसती जिस के लिए तुम ने स्वयं को नष्ट कर दिया.’
‘नहीं, मैं बेटे की
ख्याति, सुख और समृद्धि के सागर में तैरूंगी. जब मेरा बेटा
गर्व से यह कहेगा कि आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मम्मी की वजह से हूं तो उस समय
मेरे गौरव की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती.’
‘यह सब तुम्हारी खुशफहमी है, नेहा. जब तक तुम्हारा बेटा बड़ा होगा उस समय तक अपनी सफलता का श्रेय
दूसरों को देने का चलन ही नहीं रहेगा. तुम्हारा बेटा कहेगा कि मैं जो कुछ भी हूं
अपनी मेहनत और अपनी बुद्धि के बल पर हूं. यदि मांबाप ने बुद्धि के विकास के लिए
कुछ सुविधाएं जुटा दी थीं तो यह उन की जिम्मेदारी थी. उन्होंने अपनी मरजी से हमें
पैदा किया है, हमारे कहने से नहीं.’
‘चलिए, आप की यह बात भी
मान ली. लेकिन दूर से चुप रह कर भी तो अपने बेटे की सुखसमृद्धि का आनंद उठाया जा
सकता है.’
‘हां, अगर दूर और तटस्थ
रह कर उस की खुशी में खुश रह सकती हो, तो बात अलग है. लेकिन
अगर तुम चाहो कि तुम ने उस के लिए जो त्याग किया है उस के प्रतिदानस्वरूप वह भी
तुम्हारे लिए कुछ त्याग कर के दे, तो नामुमकिन है. जहां तक
मेरा खयाल है, वह अधिक समय तक तुम्हारे पास भी नहीं रहेगा.
आजकल पढ़ाई काफी विस्तृत हो रही है.’
‘चलिए, बेटा रहे न रहे,
बेटे के पापा तो मेरे पास ही रहेंगे न?’ नेहा
ने कहा था और सफाई से बात बदल दी थी. ‘वैसे मूर्खताओं में साथ देने के पक्ष में
मैं नहीं हूं लेकिन तुम्हारा साथ तो देना ही पड़ेगा,’ राजन
हंस कर बोले थे.
लेकिन, कहां दे पाए थे राजन साथ.
जितेन अभी कालेज के प्रथम वर्ष में ही था कि एक दिन सड़क दुर्घटना में बुरी तरह
घायल हो कर वे उस का साथ छोड़ गए थे.
‘‘मम्मी, कहां हो तुम?’’ जितेन के उत्तेजित स्वर से नेहा चौंक पड़ी. कर दिया न नितिन ने
सर्वनाश. जितेन को बता दिया और अब वह कहने आ रहा है कि यूनेस्को की नौकरी से इनकार
कर देगा. नेहा ने मन ही मन फैसला किया कि वह उसे क्या कह कर और क्याक्या कसमें दे
कर जाने को मजबूर करेगी.
‘‘हां, बेटे, क्या बात है?’’
‘‘करन चाचा कह रहे थे कि तुम ने मेरे लिए
जीवन में आया एक सुनहरा मौका खो दिया?’’
‘‘हां, मगर वह मैं ने
तुम्हारे लिए नहीं, अपनी ममता के लिए किया था. उस का तुम पर
कोई एहसान नहीं है.’’
‘‘तुम एहसान की बात कर रही हो, मम्मी, और मैं समझता हूं कि इस से बड़ा मेरा कोई और
उपकार नहीं कर सकती थीं,’’ जितेन तड़प कर बोला, ‘‘मैं आप को काफी समझदार औरत समझता था, लेकिन आप भी
बस प्यार में ही बच्चे का भला समझने वाली औरत निकलीं. उस समय आप ने शायद यह नहीं
सोचा कि आप की ज्यादा लियाकत का असर आप के बेटे के भविष्य पर क्या पड़ेगा?’’
जितेन की बात सुन कर नेहा चुप रही, तो वह फिर बोला, ‘‘आज अगर आप के पास डौक्टरेट की
डिगरी होती तो शायद पापा के गुजरने के बाद आप की पुरानी यूनिवर्सिटी आप को बुला
लेती. हम लोग वहीं जा कर रहने लगते और मैं बजाय अफ्रीकीएशियाई देशों में जा कर,
एक पश्चिमी औद्योगिक देश में काम करने का मौका पाता. यही नहीं,
मेरी पढ़ाई पर इस का काफी असर पड़ता. निश्चित ही आप की आय तब ज्यादा
होती. घर में ही एक प्रयोगशाला बनाने की जो मेरी तमन्ना थी, वह
अगर हमारे पास ज्यादा पैसा होता तो पूरी हो जाती और उस का असर मेरे रिजल्ट पर भी
पड़ता.’’ जितेन के स्वर में भर्त्सना थी.
‘‘हमेशा ही विश्वविद्यालय में फर्स्ट आता है.
अरे छोड़ भी. उस से ज्यादा अच्छा रिजल्ट और क्या लाता?’’ नेहा
ने हंस कर बात टालनी चाही.
‘‘वही तो आप समझने की कोशिश नहीं करतीं. 85
प्रतिशत अंकों की जगह 95 प्रतिशत अंक पाना क्या बेहतर नहीं है? खैर, आप जो भी कहिए, आप ने वह
फैलोशिप अस्वीकार कर के मेरा जो अहित किया है उस के लिए मैं आप को कभी माफ नहीं कर
सकता,’’ कह कर जितेन तेजी से बाहर चला गया.
नेहा जैसे टूट कर कुरसी पर गिर पड़ी. जितेन की
कृतघ्नता या उदासीनता के लिए वह अपने को बरसों से तैयार करती आ रही थी, पर उस के इस आरोप के धक्के को सह सकना जरा मुश्किल था.
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