अहंकार कैसे ले डूबता है?
बहुत समय पहले की बात
है जब एक गाँव में एक मुक्ति बनाने वाला रहता था और वो इतनी सुन्दर मूर्तियां बनता
था की लगता ही नहीं था की वो मूर्तियां है बल्कि लगता था की वह जीवित है, धीरे वह आस
पास के इलाकों में मशहूर होने लगा लोग उसकी मूर्तियों को बोहोत पसंद करने लगे वह भी
बोहोत खुश रहने लगा पर जैसे जैसे वह और मशहूर होता जा रहा था उसे घमंड होने लगा की
उससे अच्छा और कोई मूर्ति नहीं बना सकता और उसकी कला ही सबसे अच्छी है।
उसने बोहोत नाम कमाया
बाद में जब वह बूढ़ा हो गया और उसके मरने का टाइम आ गया और उसे लगा की अब तो उसके पास
ज़्यादा टाइम नहीं बचा है तो वह परेशान रहने लगा क्योंकि वह मरना नहीं चाहता था।
उसने अपना दिमाग लगाया
की यमदूतों को भ्रमित कैरगा और ऐसा वह अपनी ही मूर्ती बना कर करेगा उसने अपने अपनी
जैसे दस मूर्तियां बनायीं और खुद उनके बीच में जाकर बैठ गया, जब यंददात उसे लेने आये
तो वहां एक जैसी ग्यारह आकृतियों को देख कर
हैरान हो गए और ये नहीं पहचान पाए की उनमे से असली आदमी कौन है।
अब दिक्कत ये थी की अगर
असली मूर्ति बनाने वाले आदमी को नहीं ले गए तो प्रकृति का नियम टूट जायेगा और अगर मूर्तियों
को तोड़ेंगे तो कला का अपमान होगा.
यमदूतों ने भी अपना दिमाग
लगाया और मानव के स्वभाव के सबसे दुर्गुण अहंकार को परखने के बारे में सोचा और मूर्तियों
को देखते हुए बोला की वह कितनी सुन्दर मूर्तियां बानी हैं लेकिन इन मूर्तियों में एक
दिक्कार रह गयी है काश मूर्ति बनाने वाला उनके सामने होता तो उसे बताता की क्या कमी
रह गयी है इन मूर्तियों में।
ये बात सुनकर मूर्ति
बने वाले के अंदर का अहंकार जाग गया और वह भूल गया की ये यमदूत हैं और पूछ बैठा की
उसे क्या गलती हो गयी तो यमदूत ने झट से उसका गाला पकड़ लिया और बोला की बस यही गलती
की मूर्तियां बोलती नहीं हैं और उसके प्राण ले लिए।
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